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हम बुराई से नहीं डरेंगे
हिंदी उपक्षेप
लोग अक्सर मुझसे पूछा करते थे की एशिया में मेरी रूचि कहा से शुरू हुई, चीन जापान और कोरिया के संस्कृतिओ में मेरी गहरी मुग्धता का उद्भव क्या थी और ऐसा क्या था जिसने मुझमे उन राष्ट्रों की उत्कृष्ट परंपराओं के सरोवर में डुबकी लगाने की अभिलाषा जगाई। वे लोग अक्सर आश्चर्यचकित हो जाते है की मेरी रूचि जापानी मांगा या चीन की मार्शल आर्ट्स नहीं है, बल्कि बहुत ही छोटी उम्र से हिन्दू सभ्यता से मेरा संसर्ग है जिसने मुझे एक ऐसी असीम गहराई वाले वैकल्पिक सभ्यता से अवगत्त कराया जो साधारण और झूठी स्मारक से संक्रमित पश्चिमी सभ्यता को प्रतिस्थापित कर सके।
जब मैं छोटा था तब मेरी माँ मेरे लिए करी और पापड़ बनाया करती थी। वे मेरे पसंदीदा व्यंजन थे और अभी तक है। माँ अपने बिस्तर के किनारे शिव, कृष्ण और गणेश की छोटी शोभायमान मूर्ति रखा करती थी जो मुझे बचपन में बोहोत मोहित करते थे। वो मुझे अपने जंगल में देखे हुए बाघ, कलकत्ता के भीड़ भार वाले बाजार में घूमने के किस्से सुनाया करती थी। वे किस्से मेरे मन में प्राचीन मंदिर के तीव्र धुप की तरह घूमते रहते थे।
मेरी माँ का जन्म लक्ज़मबर्ग में हुआ था, लेकिन उन्होंने बहुत कम उम्र में एक अंग्रेज से शादी कर ली और उनके साथ दार्जिलिंग चली गईं। वो शादी बहुत लंबे समय तक नहीं रहा, लेकिन मेरी माँ कलकत्ता में रहने लगी और एक योगी के साथ अध्ययन किया और आध्यात्मिक गहराई की तलाश में सड़कों पर भटक रही थीं जो उन्हें यूरोप में नहीं मिला।
यह भारत के वे अनमोल टुकड़े थे जिसने मेरे ज़िन्दगी में आ कर मुझे मानव अनुभूति पर अन्य परिप्रेक्ष्य के लिए बीथोवेन और कांट से परे देखने के लिए प्रेरित किया। विश्वविद्यालय में मेरी चीनी संस्कृति में रुकी बढ़ी और मैंने जापान और कोरिया को शामिल करने के लिए स्नातक विद्यालय में उस अनुसंधान को बढ़ाया। फिर भी, मैंने जहा भी उस संस्कृति को देखा मुझे प्राचीन भारतीय शास्त्र के चमकते हुए गहने ही दिखे। चीन जापान और कोरिया में मुझे बहुत कम खिड़कियां मिलीं जो मेरे बचपन के अनुभवों से मिली प्रकाश के माध्यम से निकलती थीं।
भारत मेरे लिए और भी महत्वपुर्ण हो गया जब मैं इलिनोइस विश्वविद्यालय में “एशियाई लिटरेचर” का प्राध्यापक बना। चाहे वो गाँधी के प्रेरणादायक शब्द हो, जिसे मैंने कई बार पढ़ा और खुद से पूछा की इतनी अस्थिरता और अत्याचार के युग में इतने बुद्धिमान वक़्ती की क्या भूमिका होगी, या कालिदास द्वारा रचित शकुंतला की लुभावनी बोली जिसे मैंने सर्वेक्षण पाठ्यक्रम पढ़ाते वक़्त अनजाने में ढूंढ निकाला था। शकुंतला ने एक शक्तिशाली कर्म चक्र का उल्लेख किया है जो मानव अनुभव के हर पेहलु को जोरता है और मेरी अपनी वास्तविकता की धारणा को बदल देता है।
बाद में, जब हमने सीओल और वाशिंगटन डी.सी. में एशिया इंस्टिट्यूट शुरू किया, भारतीय बौद्धिक लखविंदर सिंह ने विश्व शान्ति के हमारी लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दूसरे विचारशील भारतीयों के साथ हमने भारत और दुनिया में उसके विकट भूमिका पर कई सेमिनार आयोजित किये। हमने हाल ही में भारत और कोरिया के किसानो के साथ अपने सभ्यता के भविष्य के बारे में बातचीत की।
तो, मेरे प्रशासन में यूनाइटेड स्टेट्स और भारत के क्या संबंध रहेंगे?
मैं आपको ये बताता हूँ की यूनाइटेड स्टेट्स और भारत के संबंध क्या नहीं होंगे।
यह भारतीय कर्मचारियो को बहुत ही कम तनख्वाह में बिना किसी पेंशन या स्वास्थ्य सेवा के वैश्विक रकम का उपयोग करके मुनाफे के लिए काम करने पर मजबूर नहीं करेगी, जिससे बैंको और व्यापारसंध के सी.इ.ओ को भारत और यू.एस. में अत्यधिक लाभ हो।
ये अरबपतियों के लिए नहीं होगा जो बिना कुछ किये पैसे कमाते है और उन पैसो का उपयोग भारतीयों के पवित्र भूमि को खरीदने क लिए करते है जिसमे उन्होंने हज़ारो वर्षो तक खेती की है और उन्हें मजबूर कर दिया है की वे प्राधिकरण द्वारा निर्धारित आये पर, और आयातित कीटनाशक, खाद और यंत्रीकृत उपकरण जो की मनुष्य की ज़िन्दगी बर्बाद कर रहे है और हमरे मिट्टी और पानी को दूषित करते है, उनपे आश्रित रहे।
यह अत्यधिक कीमत वाले हथियारो के लिए नहीं होगा जो हमारे देश को उसके वास्तविक शत्रुओ से रक्षा करने के जगह, अमीर को और अमीर बनाते है और उन्हें हमारे ऊपर और भी अधिक शक्ति देते है।
यह “फ्री ट्रेड” या “मुफ्त व्यापार” के लिए नहीं होगा जो की कीमती वस्तुओ के निर्यात को कहा जाता है, जिसे अपने घर में रहना चाहिए, एक बहुत ही कुकर्म जो वैश्विक निर्भरताएँ को बढ़ावा देता है और हमारे देशीय आत्मनिर्भरता को नष्ट करता है।
दीर्घावधि में भारतीय लोगो और अमेरिकन लोगो, भारतीय नदी, पर्वत, भारतीय मिट्टी की हित को महत्त्व मिलना चाहिए। यदि कोई सौदा शक्तिशाली और अमीरो को और धनी बनाये किन्तु भारत को दीर्घावधि में नुकसान पहुँचाए को उसे अभी रोक देना चाहिए।
निजी तौर पर, मुझे नहीं लगता कि यूनाइटेड स्टेट्स के पास भारत को सीखने के लिए ज़्यादा है। हमारे बिदेशी युद्धों ने हमे नैतिक और आर्थिक रूप से ऋणशोधनाक्षम कर दिया है। हमने टैकनोलजी का दुरूपयोग किया जिससे हमारी ध्यान केंद्रित करने कि योग्यता और सोचने कि क्षमता नष्ट हो गयी। हमने सर्कार का निजीकरण कर दिया और वैश्विक रक़म के जानवर को अपनी राजधानी में घोसला बनाने की इजाज़त दे दी और अपने नेताओ को इसकी कटपुतली बनने दिया। हमारे देज़्श में बस दो दल बचे है: वेश्या और दलाल।
मुझे लगता है हम भारत से अनंत ज्ञान प्राप्त कर सकते है। हम प्राचीन भारत से स्थिरता, नम्रता, किफ़ायत, विनम्रता, और प्रकृति और परिवार क लिए प्यार सिख सकते है।
जहा हम अमेरिकन खुद को एक बुरे स्वप्न “खपत और निष्कर्षण के डिज्नीलैंड” से मुक्त करने के लिए संघर्ष कर रहे है, वही भारतीय विचार जैसे आत्मा “स्वयं”, कर्म “काम” और मोक्ष “मुक्ति” नैतिक मूल्य पर एक नयी विचारधारा जता रही है।
वर्त्तमान में ये हास्यास्पद लगता है की मेरे जैसा कोई जो इतिहास, दर्शनशास्र, साहित्य में इतनी रूचि रखता हो, वो सरकार में क्या ही भूमिका निभा पायेगा। किन्तु हमें ये पता है कि भारत में ये विषय, सरकार के लिए बहुत हि मुख्य माना जाता है। जैसे जैसे वर्त्तमान व्यवस्था का विनाश हो रहा है और हम अँधेरे में हर तरफ किसी समझदर व्यवस्था कि खोज में टटोल रहे है, मैं आशा करता हूँ कि आज के भारतीय और आज से ३००० वर्ष पूर्ब के भारतीय, इंसानियत, ब्रह्मांड के साथ मानवता का संबंध और ब्रम्हांड कि अपनी गहरी समझ को साझा करेंगे। हमे जो चाहिए वह यह संवाद है , नाकि कोई “फ्री-ट्रेड” संधि। अमेरिका रेगिस्तान में एक अथमरे इंसान कि तरह हो गया है जिसे मुट्ठी भर रेत की नहीं बल्कि एक कप पानी कि ज़रूरत है।
राष्ट्रपति के लिए ईमैन्युअल
अठारह-बिंदु प्लेटफ़ॉर्म
- हम ऐसे किसी चुनाव को मान्यता नहीं देंगे जो निष्पक्ष ना हो
वर्तमान चुनाव प्रणाली इस हद तक भ्रष्ट है कि वह अर्थहीन हो चुकी है। योग्य उम्मीदवार को मतदान की अनुमति ही नहीं है, और उसके विचार एवम् गतिविधियों को ऐसे मीडिया द्वारा अनदेखा किया जाता है जो आवश्यक जानकारी नागरिकों तक किसी कारणवश पहुँचाता ही नहीं है। वोटों की गणना कंप्यूटर से होती है जिन्हें हैक किया जा सकता है और जिनमें लोगों के विशुद्ध चुनाव का कोई प्रमाण तक नहीं बचता। जिन क्षेत्रों में दरिद्र लोग रहते हैं, वहाँ इतनी कम वोटिंग मशीनें हैं कि वृद्ध माता-पिता को घंटों लाइन में प्रतीक्षा करनी पड़ती है, शाम ढलने के साथ ठिठुरते हुए।
पिछला चुनाव हास्यास्पद था और डेमोक्रेटिक व रिपब्लिकन पार्टियाँ दोनों ही स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी के शव पर मानो गिद्ध नज़र गड़ाए हुए थीं, बस दोनों के इरादे थोड़े अलग थे।
हम राष्ट्रपति, या किसी अन्य ऑफिस के लिए किये गए किसी भी चुनाव को तब तक वैध नहीं मानते जब तक कि वह राष्ट्र चुनाव को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निरीक्षित नहीं करवाता जिसमें प्रत्येक नागरिक को यह आश्वासन मिल सके कि उसका मताधिकार आसानी से सत्यापित किया जा सकता है, और जिसमें प्रत्येक योग्य उम्मीदवार उसकी नीतियों को सीधे लोगों के सामने रख सके। सम्पूर्ण चुनाव हर स्तर पर पारदर्शी होना चाहिए और वाणिज्यिक विज्ञापन पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
पिछली बार का चुनाव वैध था, लेकिन इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को रद्द करना हमारा नैतिक दायित्व है। मुझे इसकी चिंता नहीं है कि राष्ट्रपति की इस दौड़ में कोई अमीर व्यक्ति मुझे फंड नहीं देंगे, कोई राजनैतिक पार्टियाँ मेरा सहयोग नहीं करेंगी, अगला चुनाव इतना छलपूर्ण होगा कि किसी भी स्थिति में हम परिणामों को स्वीकार तक नहीं कर पाएँगे, या विजेता का दावा करने वालों को पहचान तक नहीं पाएँगे।
और फिर, जो लोग “निर्वाचित” हैं वे जल्दी ही यह सिद्ध कर देंगे कि वे कैसे भी “हम लोग (we the people)” शब्दों पर खरे नहीं उतर रहे। हम लोगों को प्रतीक्षा करनी पड़ेगी जब तक कि न्यायसंगत चुनाव नहीं होता, ऐसा चुनाव जिसमें योग्य उम्मीदवारों को भाग लेने दिया जायेगा।
- 2. मौसम में बदलाव एक बड़ा सुरक्षा खतरा है;
प्रतिक्रिया में देशी और विदेशी नीति के प्रत्येक पहलू शामिल होने चाहिए
मौसम में बदलाव का शमन करने और अनुकूलन करने के लिए शत-वर्षीय योजना के प्रति जो पूर्ण प्रतिबद्धता है, उसे संयुक्त राज्य के लिए हर सुरक्षा, आर्थिक और शैक्षणिक नीति का केंद्र रखा जाना चाहिए। हमें इस योजना हेतु सभी संसाधन उपलब्ध करवाने चाहिए, किसी युद्ध अर्थव्यवस्था के बराबर ही स्वयं को प्रतिबद्ध करना चाहिए, ताकि दो से तीन वर्षों में पेट्रोलियम और कोयले का उपयोग घटाकर शून्य पर लाया जा सके और प्लास्टिक व पेट्रोलियम-आधारित उत्पादों एवम् अन्य सामग्रियों के उपयोग को समाप्त किया जा सके।
सरकार भविष्य के लिए दिशा-निर्देश जारी करेगी जिसमें जीवाश्म ईंधनों (फॉसिल फ्यूल) के उपयोग को शीघ्रता से कम करने, निजी ऑटोमोबाइल के उपयोग को समाप्त करने और हवाईजहाज के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग करेगी। हम आस-पास सभी जगह सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा जनरेटर स्थापित करने के लिए आर्थिक सहायता देंगे। इस उद्देश्य के लिए सरकार इन तकनीकों के सभी बौद्धिक सम्पदा अधिकारों को पब्लिक डोमेन में रखेगी। इंसुलेशन और सौर व पवन ऊर्जा के लिए सभी इमारतों का तुरन्त उन्नयन (अपग्रेड) किया जायेगा, ताकि कार्बन उत्सर्जन लगभग शून्य पर लाया जा सके। सरकार लम्बी-अवधि लागत की गणना करके 50-वर्षीय लोन के माध्यम से ऐसा करेगी, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) तुरन्त जीवाश्म ईंधन से सस्ती हो जाएगी।
हम कोयले, पेट्रोलियम और यूरेनियम की सभी सब्सिडी बंद कर देंगे। इन ईंधनों को नियंत्रित पदार्थों की श्रेणी में रख दिया जायेगा जिन्हें लाभ के लिए बेचा या खरीदा नहीं जा सकता।
पूरे राष्ट्र की तुलना में सेना 100% नवीकरणीय ऊर्जा में ज्यादा जल्दी बदल जाएगी और यह इकोसिस्टम का सबसे सशक्त रक्षक बन जाएगी, ऑइल युद्ध, या बेकार जिओइंजीनियरिंग नहीं।
प्रदूषण फैला रहे लड़ाकू विमानों और पुराने हवाईजहाज वाहकों (एयरक्राफ्ट कैरियर्स) को तुरन्त बंद कर दिया जाएगा, बिना इसकी चिन्ता किए कि वे निगमों को काफी लाभ पहुँचा रहे थे। रिन्यूएबल ऊर्जा परियोजनाओं में संक्रमण रोजगार के तहत जिन्होंने अपनी नौकरी गँवा दी है, हम उन्हें आश्वासन देते हैं। यहाँ तक कि, हम उन सभी को आश्वस्त करना चाहते हैं जो नौकरी की तलाश में हैं।
पेट्रोलियम, कोयला और प्राकृतिक गैस जैसे जहरीले पदार्थ नागरिकों के बीच फैलाकर तेल और गैस निगम खरबों डॉलर कमा चुके हैं और उन्हें इस बात की पूरी जानकारी रही है कि इससे पर्यावरण दूषित हो रहा है। ऐसे कृत्य अपराधिक हैं। ऐसे निगमों और उनके मालिकों की सम्पत्ति को सरकार द्वारा जब्त कर लिया जाएगा और उस पूँजी को हमारी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में लगाया जाएगा। ऊर्जा, खाद्य पदार्थों और प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग घृणास्पद माना जाएगा जो कि वास्तव में है और इसे बेहतर जीवन के नाम पर कभी भी प्रोत्साहन नहीं दिया जाएगा।
सरकार ही वास्तविक टिकाऊ नगरीय और उपनगरीय समुदायों के बनाने के कार्य का संचालन करेगी और जैव विविधता को सुनिश्चित करने के लिए वन्य प्रदेशों की पुनर्स्थापना का बेड़ा उठाएगी। इसका अर्थ है कि मॉल, पार्किंग की जगहों, कारखानों और फ्रीवे को हटा दिया जाएगा जिन्होंने हमारे पावन वन्य प्रदेशों और कीमती आर्द्रभूमि को अशुद्ध कर दिया है।
- किसी भी प्रकार परमाणु हथियारों को समाप्त करना
मानवता परमाणु युद्ध के अभूतपूर्व जोखिम का सामना कर रही है, जिसे “प्रयोज्य” छोटे परमाणु उपकरणों को बढ़ावा देकर और भी भयावह कर दिया गया है। यह एक दुखद उपहास है कि हम अब परमाणु ताकतों को बढ़ाने में खरबों डॉलर खर्च कर रहे हैं जिसे बंद किया जाना चाहिए।
हम स्वयं से प्रतिज्ञा करेंगे कि इन खतरनाक हथियारों को पृथ्वी से समाप्त कर देंगे, यह प्रक्रिया चाहे कितनी भी दर्दनाक क्यों ना हो। हमारे बच्चों की भलाई के लिए, हम जबरदस्ती जब्त करके सभी परमाणु हथियारों को विनष्ट कर देंगे, संयुक्त राज्य से शुरुआत करके विश्व के सभी देशों से। हम घर से और विदेशों से, सरकार के अन्दर और बाहर नागरिकों के प्रतिबद्ध समूहों को साथ लेकर कार्य करेंगे, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि परमाणु हथियारों का उत्पादन बंद हो चुका है।
- अतीत में अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक जाँच शुरू करना जिसका सामना करने से कई लोग मना कर चुके हैं
हम मौसम में बदलाव और परमाणु युद्ध के जोखिम से बचने में तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक कि हम इस नकारात्मक संस्कृति को बदल नहीं देते जिसने हमें पिछले बीस वर्षों से जकड़ा हुआ है। 2000 के चुनावों के बाद हमें एक छोटे से समूह द्वारा निर्भय जाँच करवानी होगी जिसमें वह तथाकथित “9/11” घटना भी शामिल है।
जब हम अंतर्राष्ट्रीय “सत्य और सुलह” की स्थापना करें तो इसकी जाँच करने और हमारे नागरिकों व समग्र विश्व के सामने यह सत्य कथा लाने के लिए हमें वैज्ञानिक तरीकों की ताकत का भी उपयोग करना चाहिए। यह जाँच कितनी दूर तक जाए, इसकी कोई सीमा रेखा नहीं रखनी चाहिए। मामले की गम्भीरता को देखते हुए सारी सम्बन्धित सामग्री अवर्गीकृत होनी चाहिए। हमें उन प्रचलित कहानियों से संतुष्ट नहीं होना चाहिए जो एक-दूसरे समूह को दोष देती हैं। ओरिएंट एक्सप्रेस पर हत्या एक ऐसा अपराधिक मामला था जिसे सुलझाया जा सकता था।
- संयुक्त राज्य की सेना को वापस घर बुलाया जाए और उसे संयुक्त राष्ट्र में पदोन्नत किया जाए
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जिन सैन्य दलों को संयुक्त राज्य ने विश्व भर में तैनात किया था उनमें से अधिकांश को वापस बुला लेना चाहिए, धनाढ्य लोगों का स्वार्थ पूरा करने के लिए स्वार्थपूर्ण उद्यमों में उन सैन्य दलों का शोषण किया जाता है। हमें वास्तविक अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु लड़ने और मरने के लिए तैयार रहना चाहिए, लेकिन विशुद्ध रूप से सिर्फ इसी कार्य के लिए जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में वर्णित है। हमारे पैरों तले की जमीन की लालची ताकतों से रक्षा करने के लिए होने वाले युद्ध में हमारी जान को जोखिम में डालना बेहतर रहेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमारे महासागरों का शुद्ध जल विषाक्त ना हो जाए, और वनों को सदा के लिए सुरक्षित किया जा सके, बजाय इसके कि बहुराष्ट्रीय निगमों के हित में संसाधनों से सम्बन्धित व्यर्थ के युद्ध लड़े जाएँ।
हमारे नाजुक ग्रह के भविष्य के विषय में योजना बनाने और फिर उन्हें लागू करने के लिए संयुक्त राष्ट्र प्राथमिक स्थान होना चाहिए। वरना हमें वैश्विक दृष्टि को ध्यान में रखते हुए स्थानीय स्तर पर कार्य करना होगा। यह प्रक्रिया केवल तभी सफल हो सकती है जब संयुक्त राज्य और संयुक्त राष्ट्र का सम्पूर्ण सुधार हो जिससे वे पृथ्वी के समस्त नागरिकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए सशक्त हो जाएँ जिसमें निगमों या धनाढ्य व्यक्तियों का कोई हस्तक्षेप ना हो।
- निगम जन-समुदाय नहीं हैं;
अमीरों का भी एक ही वोट होता है
निगम जन-समुदाय नहीं हैं और नीति बनाने में उनकी कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। ये ही बात अति-धनाढ्य लोगों, और उन निवेश बैंकों के लिए भी लागू होती है जिनके माध्यम से वे अपनी इच्छाएँ पूरी करते हैं। नीति निर्माण करने वालों को आवश्यक जानकारी आजीवन नागरिक कर्मचारियों, प्राध्यापकों और ऐसे अन्य निष्णांतों से मिलनी चाहिए जो बिना किसी लाभ के हमारे देश की वर्तमान स्थिति में उत्थान के लिए कार्यरत हैं।
धनाढ्य लोग सिर्फ इंसान हैं; उनके पास किसी अन्य से ज्यादा कोई अधिकार नहीं हैं। नीति निर्धारण में उन्हें कोई विशेष भूमिका नहीं दी जानी चाहिए। जो नीति को प्रभावित करने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पैसे का उपयोग करते हैं, वे भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी में संलग्न हैं। हमें “सलाह” और “पक्ष जुटाव” जैसे स्वच्छ शब्दों का उपयोग करके इन अपराधों पर पर्दा नहीं डालना चाहिए।
हमें नागरिक सेवाओं को सशक्त बनाना चाहिए ताकि सरकार पुनः निगमों से अपनी स्वतंत्रता हासिल कर सके और लोगों की सुरक्षा के लिए कठोर नियामक प्रणाली बना सके। हम पहले भी ऐसा कर चुके हैं और आगे भी कर सकते हैं। उस प्रक्रिया में, बैंक या संचार व ऊर्जा कंपनियों जैसे कई निगम राष्ट्रीयकृत कर दिए जाएँगे, और उनका संचालन ऐसे नागरिक कर्मचारियों के प्रतिस्पर्धी स्टाफ द्वारा किया जाएगा जिनका पवित्र उद्देश ही सामान्य जन की भलाई होता है। अन्य निगम नागरिकों के नियंत्रण और स्वामित्व में सामूहिक रूप से स्थानीय स्तर पर संचालित होंगे। प्राचीन समय से ऐसे आदर्श शासन की मिसाल मिलती रही है और इसके लिए वैचारिक सजावट की आवश्यकता नहीं है।
- एक ऐसी अर्थव्यवस्था जो लोगों की और लोगों के लिए हो
आर्थिक समानता और वित्त के विशुद्ध विनियमन के बिना प्रजातंत्र संभव नहीं है। जब हम सो रहे थे, एक धूर्त गुट ने दशकों तक गैरकानूनी और अनैतिक तरीकों से खूब धन बटोर लिया और उस एकत्रित पैसे को समुद्र पार संचित करके रख लिया। हमारे अधिकांश नागरिक तो इस भ्रष्टाचार की कल्पना भी नहीं कर सकते, जो उद्योग और सरकार के चमकदार मुखौटे की आड़ में सभी जगह फ़ैल चुका है।
यह सभी बंद होगा। हम आतंरिक राजस्व सेवा और अन्य सरकारी ब्यूरो में ऐसे हजारों पेशेवर ऑडिटर्स को सशक्त बनाते हैं जो FBI की सहायता से आगे बढ़ेंगे और सुरक्षा विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ़ डिफेंस) सहित सभी सरकारी शाखाओं में बेधड़क सारी ऑडिट करेंगे। हम कांग्रेस और इसके सभी सदस्यों की सम्पूर्ण वित्तीय ऑडिट करने की माँग करेंगे। साथ ही पूरी कार्यकारी शाखा (एग्जीक्यूटिव ब्रांच) और न्यायतंत्र के सभी मुख्य सदस्यों की भी ऑडिट की जाएगी। हम आग से भी नहीं डरेंगे, हजारों लोगों पर जुर्माना लगाएँगे और कारावास देंगे, या आवश्यक हुआ तो इससे भी बढ़कर।
एक बार जब सरकार पुनः अपने माननीय नागरिकों के हितों के लिए समर्पित हो जाएगी तब हम निगमों और अति-धनाढ्य लोगों के लिए यह प्रक्रिया शुरू करेंगे।
याद रखें कि जो लोग खराब धन में खेलते हैं, उन्होंने यह धन अवैध व्यापार प्रथाओं द्वारा पूँजी तक अनुचित पहुँच के माध्यम से कमाया है। उनकी संपत्ति को घटा दिया जाएगा ताकि वे इसका उपयोग पत्रकारिता, राजनीती या शिक्षा को कमजोर करने के लिए ना कर सकें। अब से वित्त एक अत्यधिक विनियमित क्षेत्र होगा जिसे मुख्य रूप से लोगों के प्रति जवाबदेह सरकारी संस्थाओं की निगरानी में रखा जाएगा। क्षेत्रीय बैंक सहकारी समितियों का रूप लेंगे जिनका संचालन स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए नागरिकों द्वारा किया जाता है। गैर-जवाबदेह बहुराष्ट्रीय बैंकों के जोखिम से नागरिकों को बचाने के लिए किसी भी डिजिटल मुद्रा को अनुमति नहीं दी जाएगी।
- सच्ची शिक्षा और खोजी पत्रकारिता को सहयोग दें
राजनीती किसी भी मतलब की नहीं रह जाएगी यदि हमारे नागरिकों को अपने समाज के बारे में सूक्ष्मता से सोचने और उनकी कल्पनाओं की अनंत क्षमता का भरपूर उपयोग करने के लिए जरूरी अच्छी शिक्षा ना मिल सके। नागरिकों को कम उम्र से ही इतिहास और साहित्य, दर्शन और विज्ञान पढ़ना चाहिए ताकि वे हमारी उम्र की जटिल समस्याओं को समझ सकें।
हम एक नई शिक्षण प्रणाली बनाएँगे जिसमें सभी नागरिकों के साथ समान बर्ताव होगा। स्कूलों के फंड को कभी भी स्थानीय रियल एस्टेट टैक्स से नहीं जोड़ा जाएगा। शिक्षकों को समाज के अन्य सदस्यों की तरह ही पुरस्कृत किया जाएगा। सभी को अच्छी शिक्षा प्रदान की जाएगी क्योंकि हम प्रत्येक को एक सक्रिय नागरिक के रूप में देखना चाहते हैं।
पत्रकारिता शिक्षा का ही एक विस्तार है, इसलिए इसे नागरिकों को असली मुद्दों से अवगत कराना चाहिए, ना कि सनसनीखेज घटनाओं से, और इसे लोगों को सिखाना चाहिए कि वस्तुओं को ऊपरी रूप में ही ना देखकर आर्थिक व सांस्कृतिक वास्तविकता पर देखना चाहिए।
दुखद रूप से, पत्रकारिता एक ऐसे लज्जाजनक कीचड़ का रूप ले चुकी है जो विकृत चित्रों और दिखावटी बातों, निराधार चीजों से अख़बारों, टीवी प्रसारणों और इन्टरनेट पोस्ट्स को भरने का काम कर रही है, जो हमारे निकृष्ट देवदूतों को आकर्षित करते हैं।
जबकि नागरिकों को निष्पक्ष तरीके से सोचना और एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए साथ मिलकर काम करना सीखना चाहिए, उनके अन्दर बल्कि यौन इच्छा भड़काई जा रही है या निरर्थक कार्य की ओर बढ़ने को प्रेरित किया जा रहा है।
सरकार को स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर निष्पक्ष मीडिया का साथ देना चाहिए जो सत्य के प्रति समर्पित हो और जो नागरिकों को स्वयं सोचने को प्रोत्साहित करता हो। हाल के गंभीर मुद्दों को लेकर खोजी पत्रकारिता, साहसी पत्रकारिता को एक बार वापस व्यावहारिक कैरियर बन जाना चाहिए।
कला हमारे नागरिकों के जीवन का हिस्सा होनी चाहिए, वह चाहे पेंटिंग हो, मूर्तिकला हो, डिजाइन, नाटक, संगीत या साहित्य हो। सरकार को इन सबको बढ़ावा देना चाहिए ताकि नागरिकों में अपने आपको अभिव्यक्त करने को लेकर आत्मविश्वास जग सके और वे स्वयं अपने भविष्य को देखने की दृष्टि पा सकें। नागरिकों को निगमित मीडिया द्वारा तैयार चमकदार चित्रों या चिकनी बातों पर भरोसा करने को विवश नहीं किया जाना चाहिए।
कलात्मक अभिव्यक्ति को बढ़ावा देकर युवाओं को आज की तुच्छ और विकृत संस्कृति से बाहर निकाला जा सकता है, वह जो उन्हें छोटे-छोटे सुख की तरह धकेल रही है और समाज के प्रति समर्पित होने की उनकी क्षमता को लूट रही है। उन्हें स्वयं उनकी अपनी फिल्म, उनके अपने समाचारपत्र और उनकी अपनी पेंटिंग व फोटो बनाने का अवसर प्रदान करके उनके अन्दर समाज को बदलने का आत्मविश्वास जगाया जा सकता है, जबकि उनके काम के लिए उन्हें उचित वेतन भी दिया जाए।
- 13वें संशोधन की माँग है कि दासत्व समाप्त किया जाए
हमारे संविधान का 13वाँ संशोधन स्पष्ट रूप से दासत्व पर रोक लगाता है। फिर भी हमारे कई नागरिक बैंकों की दूषित प्रथाओं के कारण कर्ज में डूबे हुए हैं, जो कारगर दासों की तरह कारखानों और स्टोर्स में काम करते हैं। हमारे कई नागरिक झूठे आरोपों के कारण कारागार में बिना वेतन काम करने को मजबूर हैं या अपने प्रियजनों को देखने तक को तरस रहे हैं। ये सभी अपराध निगमों के फायदे के लिए हैं।
ये घिनौने कृत्य 13वें संशोधन के दृढ़ता से लागू होने पर बिना किसी आपत्ति के बंद होंगे।
अमेरिकी कर्मचारियों के साथ उन बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा अपमानजनक बर्ताव किया जाता है जो अमेरिकी होने का ढोंग करती हैं। यहाँ तक कि उन निगमों द्वारा पुलिस, सैनिक और स्थानीय एवं संघीय संस्थाओं व व्यवसायों के कर्मचारियों के साथ भी गुलामों की तरह अपमानजनक बर्ताव किया जाता है जो 13वें संशोधन की घोर अवहेलना करते हुए इनको मूल आय के लिए भी निर्भर बनाकर रख देना चाहते हैं।
- व्यापार पारिस्थितिक (इकोलॉजिकल) और एकदम मुफ्त होना चाहिए
व्यापार दुनिया भर में समुदायों के बीच अदल-बदल का एक सुनहरा अवसर हो सकता है। लेकिन व्यापार, जैसा कि आजकल प्रचलन में है, हमारे अनमोल इकोसिस्टम और लोगों को नुकसान पहुँचा रहा है। व्यापार का मतलब केवल विशालकाय जहाजों से है, जो निवेश बैंकों के नियंत्रण में हैं, जो समुद्र मार्ग से सामान ले जाते समय भारी धुआं छोड़ते हैं और केवल कुछ लोगों के फायदे के लिए काम करते हैं, ना कि उन लोगों के लिए जो सामान बनाते हैं, ना ही उनके लिए जो उनका उपयोग करते हैं।
यह पृथ्वीवासियों के लिए लाभदायक नहीं है, और “व्यापार” के नाम पर नुकसान भुगत रहे स्थानीय उद्योगों और खेतों के लिए, और बिना इच्छा के आयातित माल खरीदने को मजबूर नागरिकों के लिए निश्चित रूप से यह “अंतर्राष्ट्रीयकरण” भी नहीं है, यह निवेश बैंकों और सट्टेबाजों के द्वारा नियोजित है। हमें साथ मिलकर इसपर पूरी तरह पुनर्विचार करना चाहिए कि वास्तव में व्यापार कहते किसे हैं और 100% जीवाश्म ईंधन मुक्त व्यापार व्यवस्था का निर्माण करना चाहिए जो हर किसी के लिए उपलब्ध हो और जो स्थानीय समुदायों की जरूरतों का आदर करता हो।
- नैतिक पतन इस राजनैतिक संकट के मूल में बसता है
वर्तमान संकट सबसे ऊपर आध्यात्मिक संकट है। जब हम सो रहे थे, हमारा देश पतन और संकीर्णता की गहराईयों में चला गया। सभ्यता का यह रोग उनको भी लग गया जिनकी भावनाएं उत्तम थीं। विनम्रता, मितव्ययिता और अखंडता हमारे शब्दकोष से मिट चुके हैं। मूल्यों और चरित्र का अदृश्य आतंरिक विश्व जो नागरिकों की नैतिक तर्कशक्ति का आधार होना चाहिए था, उसकी जगह एक ऐसे प्रदर्शन ने ले ली है जो नागरिकों को गन्दगी का एक निष्क्रिय ग्राहक बना देता है।
जब तक हम अपने कार्यों को स्वयं नियंत्रित नहीं कर सकते हों, ऐसे समुदाय नहीं बना सकते जो सच्चाई की माँग करते हों, जब तक हम अपने पड़ोसियों पर भरोसा ना कर सकते हों, अपने बच्चों से दिल खोलकर बात नहीं कर सकते हों और सामान्य मूल्यों को ऊँचा नहीं उठा सकते हों, तब तक हमारे देश पर कब्जा किए बैठी शक्तियों के सामने खड़े रहने में हम असमर्थ ही रहेंगे।
- सैन्य खुफिया भवन को बदलना
अनियंत्रित सेना के कारण ज्यादा कीमत पर हथियार बेचकर निगम हमारे टैक्स डॉलर्स को ले जाते हैं और सीधे अपने बैंक अकाउंट में स्थानांतरित कर देते हैं, उन हथियारों की फिर समीक्षा भी नहीं होती, या वैज्ञानिक परीक्षण भी नहीं होता।
हमें ऐसे पुरुषों और महिलाओं की जरूरत है जो अपने देश के लिए जान देना चाहते हों। दुखद रूप से उन पवित्र भावनाओं को कुटिल तरीके से गलत निर्देशित किया जा रहा है। सेना, और उसे पेनम्ब्रा की तरह घेरे हुए खुफिया “समुदाय” को बदलना चाहिए, और सर्वोपरि, वह मौसम के बदलाव का शमन करने, और उसे अनुकूलित करने, और बायो-फासिज्म जैसे अन्य वास्तविक सुरक्षा जोखिमों से निपटने के लिए समर्पित होनी चाहिए।
जीवाश्म ईंधन जैसे राक्षस, और उसके अनुचर जो हमरे देश पर राज कर रहे हैं, इनका अन्त करने और हमारी अर्थव्यवस्था को बदलने के खतरनाक काम को अंजाम देने में ही हमारे जवानों की बहादुरी है।
जवानों! अगर आप इन ऊर्जा जारों के विरुद्ध खड़े नहीं हो सकते तो आप अपने आपको कैसे बहादुर कह सकते हो?
“हमारी शांति और समृद्धि को उलझाना” के खतरों से सम्बन्धित जॉर्ज वॉशिंग्टन की चेतावनी के उल्लंघन के रूप में हम अनेक गुप्त संधियों की तरफ दौड़ चुके हैं जिन्हें संयोग से “इंटेलिजेंस शेयरिंग” और “सुरक्षा सहयोग” का नाम दिया गया है, जो हमें 1914 की जैसी तबाही की तरफ ले जा रही हैं। उस समय, ऐसी गुप्त संधियों के कारण एक भीषण दूरगामी प्रभाव पड़ा जो विश्व को एक भयंकर युद्ध की तरफ ले गया।
आपमें से जो भी NSA के लिए कम भुगतान पर नौकरी कर रहे हैं, आपमें से जिन्होंने भी हमारी अनगिनत ईमेल को पढ़ा हो, या अफगानिस्तान के खतरनाक पर्वतीय रास्तों में भ्रमण करते हैं, आपमें से जिनको भी बड़े निगमों के आदेश पर बेकार चीजों द्वारा सामान्य लोगों को परेशान करना पड़ रहा हो, मेरी बात सुनें! मैं आपसे सच कहता हूँ, “मेरा साथ दें! आपके पास आपकी जंजीरों के अलावा खोने को और कुछ नहीं है।”
- हमारे नागरिकों पर तकनीक का खतरनाक प्रभाव डालना बंद करें
मीडिया तकनीक के क्रांतिपूर्ण तरीके से बढ़ने को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत कर रहा है। अभी तक, अधिकतर, ऐसी नई तकनीकों को अपनाकर हमने अपनी ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता को गँवाया है, स्वयं के बारे में सोचने के साधनों से वंचित किया है, और बतौर नागरिक कार्य करने के लिए जरूरी जागरूकता से दूर किया है। तकनीक का उपयोग करके हमारे अन्दर छोटी-अवधि की उत्तेजना पैदा की जा रही है जो फिर लत बन जाती है। ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निगमों को लाभ पहुँचाते हैं, लेकिन वे इस संकट की गंभीरता से अनजान नागरिकों को उसमें डाल देते हैं।
हमें एक-दूसरे से बात करनी चाहिए, और हमें ऐसी नौकरी की जरूरत है जिसमें एक-दूसरे की सहायता की जा सके। लेकिन हमारा सामना होता है, बस रिकार्डेड मैसेजों से, स्वचालित चेकआउट से और उन सुपर-कंप्यूटर्स की लम्बी लाइनों से जो आराम से निगमों के लाभ की गणना करते रहते हैं। इस डिजिटल रेगिस्तान में हम बिल्कुल अकेले हैं। यह कोई संयोग नहीं है बल्कि एक सोचा-समझा अपराध है।
हमें गंभीर रूप से समीक्षा करनी चाहिए कि तकनीक का समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इससे पहले कि हम उसे अमल में लाएँ। तकनीक बेहद मददगार हो सकती है, लेकिन सिर्फ तभी जब उसका उपयोग हमारी उम्र की वास्तविक चुनौतियों का हल निकालने के लिए किया जाए, ना कि हमें बदलने के लिए।
हमारी पृथ्वी और हमारे समाज की स्थिति को वैज्ञानिक रूप से समझना ही हमेशा हमारा लक्ष्य होना चाहिए। हम विज्ञान और तकनीक में अंतर करने में भ्रमित हो जाते हैं। जैसा कि पॉल गुडमैन ने लिखा है, “भले ही यह नई वैज्ञानिक शोध मानी जाए या नहीं, तकनीक नैतिक दर्शन की एक शाखा है, विज्ञान की नहीं।”
- गैर-बौद्धिक अभियान को रोकें जो हमें चुप करने के लिए है
हमारे नागरिक उन असीमित अभियानों से घिर गए हैं जो गैर-बौद्धिक भावनाओं को बढ़ावा देते हैं और जो विश्व के बारे में गहराई से सोचने के प्रति हतोत्साहित करते हैं। इसके परिणामस्वरूप हमारी संस्कृति में जो बदलाव आ रहा है वह स्वाभाविक नहीं है, बल्कि यह उन छिपी हुई ताकतों द्वारा लाया हुआ है जो हमें विनम्र बनाना चाहती हैं।
हमें हमारे देश के हर कोने में बौद्धिक संलग्नता का स्तर बढ़ाना चाहिए, और लोगों को उनके बारे में सोचने, और स्वयं समाधान बताने के लिए प्रेरित करना चाहिए। पढ़ना, लिखना और बहस करना इस प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण हैं और इनके लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
नागरिकों को हस्तियों द्वारा प्रस्तावित सरल और शुष्क राय पर निर्भर नहीं होना चाहिए।
हम विज्ञापन के जहरीले जंगल व जनसंपर्क कंपनी को नागरिकता को बेजुबान करने और सबसे बढ़कर स्वार्थ के इस कपटपूर्ण पंथ को लादने की अनुमति नहीं दे सकते। जो नुकसान वे अभी तक कर चुके हैं उतना ही काफी भयावह है। एक साधारण बंजर भूमि ने सारे टीवी चैनल, सारे मॉल और सारे ऑफिसों पर कब्जा जमा लिया है।
विज्ञापन और PR उद्योग को कठोरतम विनियमों का पालन करना चाहिए ताकि हमारे नागरिकों को मीडिया में वो चित्र दिखाए जाएँ जो बौद्धिक संलग्नता को बढ़ावा देते हों और एक स्वस्थ समुदाय की तरफ ले जाते हों। नागरिकों को ऐसे लेख (आर्टिकल) पढ़ने, और प्रसारण देखने का अधिकार है जो हमारे जीवन की सच्चाई को वैज्ञानिक तरीके से बताते हों, और उन कार्यक्रमों से बचने का भी अधिकार है जो अमीरों के विलासी जीवन के दृश्यों को नमूने के तौर पर प्रस्तुत करते हों।
- सात पीढ़ियों के Iroquois सिद्धांत को पूर्वरूप में लाएँ; विकास और उपभोग के पंथ को खत्म करें
हालाँकि, Iroquois राष्ट्र के संविधान का संयुक्त राज्य संविधान पर काफी गहरा प्रभाव रहा, स्थिरता पर इसका ध्यान हमारे संस्थापक पूर्वजों द्वारा दुखद रूप से अनदेखा किया गया। Iroquois और अन्य मूल राष्ट्रों की परम्पराओं को कभी भुलाना नहीं चाहिए। Iroquois राष्ट्र का “सातवीं पीढ़ी” का सिद्धांत माँग करता है कि हम इसपर विचार करें कि आज के हमारे निर्णय आने वाली सात पीढ़ियों के हमारे वंशजों के जीवन को कैसे प्रभावित करेंगे। यह सिद्धांत वैज्ञानिक और तर्कसंगत है, और यह इस धारणा का विरोध करता है कि महासागर, जंगल और घास के मैदान ऐसे सामान हैं जो व्यक्तिगत हैं या निगमों के अधिकार में हैं, और व्यक्तिगत लाभ के लिए उन्हें नष्ट किया जा सकता है।
इस “सातवीं पीढ़ी” सिद्धांत को संविधान में संशोधन के रूप में जोड़ा जाना चाहिए, ताकि यह हमारी आर्थिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का सम्पूर्ण पुनर्मूल्यांकन कर सके।
हमें राष्ट्र के कल्याण का आकलन करने के लिए “विकास” और “उपभोग” जैसे भ्रामक शब्द काम में लेना बंद कर देना चाहिए। हमें हमारे सभी नागरिकों के स्वास्थ्य, पर्यावरण के हित और जंगली जानवरों व वनस्पति की समृद्धि के विषय में समग्र रूप से विचार करना चाहिए।
हमारी उत्तरजीविता के लिए साथ मिलकर काम करना आवश्यक है। हम केवल धन-राशि (बजट) द्वारा समस्याओं को नहीं सुलझा सकते यदि बजट केवल पैसे पर निर्भरता को ही बढ़ावा देते हों। हमें नागरिकों के बीच वस्तु-विनिमय प्रणाली बनानी चाहिए ताकि पास-पड़ोसी एक दूसरे की मदद कर सकें और परस्पर सहायता के कार्यक्रम तैयार कर सकें जिससे परिवार और समुदाय आत्मनिर्भर बन सकें।
स्वास्थ्य केवल सरकार द्वारा एक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में पैसे स्थानांतरित करके नहीं प्रदान किया जा सकता। हमें नागरिकों को भी एक-दूसरे की देखभाल करने, दवाइयों के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने, जड़ी-बूटी से उपचार करने और उचित व्यायाम करने के लिए प्रेरित करना होगा ताकि कई बीमारियों का इलाज वे स्वतः ही बिना पैसे के कर सकें।
- लोगों के लिए खेती और एक स्वस्थ व निष्पक्ष खाद्य अर्थव्यवस्था
ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान में जो तेजी से वृद्धि हो रही है इससे आने वाले दशक में भोजन की कीमत में घातीय रूप से वृद्धि हो जाएगी और खेती करना उत्तरजीविता के लिए सबसे जटिल कार्य हो जाएगा। हमने अभी तक इस तबाही से बचने का उपाय सोचना भी शुरू नहीं किया है।
हमें इस औद्योगिक खेती की दिवालिया प्रणाली को पीछे छोड़कर अब ऐसी खेती की तरफ लौटना चाहिए जो लोगों द्वारा लोगों के लिए हुआ करती थी। जमीन को कई सारे नागरिकों में बाँट देना चाहिए जो उसका उपयोग पारिवारिक खेतों के रूप में कर सकें। इसमें विलाप या निंदा करने जैसा कुछ नहीं है। धरती माँ द्वारा दिए गए जल और मिट्टी कभी भी निगमों की संपत्ति नहीं थे, और ना ही कभी होंगे।
कृषि के लिए सम्पूर्ण आवंटन प्रणाली विनियमित होनी चाहिए और इस तरह निष्पक्ष भी। बजाय इसके कि कुछ लोग कृषि निर्यात द्वारा अपना भाग्य चमकाएँ, यह कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि भोजन का उत्पादन इस तरह से हो कि हमारी मिट्टी और पानी को नुकसान ना पहुँचे। अमेरिकी लोगों को टिकाऊ जैविक खेती को अंगीकार करना चाहिए, बल्कि अभी करना चाहिए।
- संविधान में ना तो रिपब्लिकन ना ही डेमोक्रेटिक पार्टी का उल्लेख है
दोषारोपण के थ्री-रिंग सर्कस ने यह हमारे सामने ला दिया है कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था को संविधान से कोई मतलब नहीं है। शासन मृत है और राजनीती कॉर्पोरेट लॉबिस्टों, निवेश बैंकरों, मीडिया पंडितों और अमीरों के बीच विवादों में सिमट कर रह गई है, जिनकी वे सेवा करते हैं। मीडिया तो बहुत पहले ही पत्रकारिता की अखंडता को छोड़ चुका है और शराबी भीड़ की तरह बस पहलवानों पर अंडे फेंकने का कम कर रहा है।
नीति बनाने और उसके लागू करने से जुड़े सारे विवाद संविधान में वर्णित सरकारी कार्यालयों में पारदर्शी तरीके से सुलझाये जाने चाहिए।
आज भी, नीति निगमों द्वारा बनाई जाती है, या विवादों पर चर्चा अपारदर्शी और गैर-जिम्मेदार राजनैतिक पार्टियों द्वारा की जाती है, वो भी स्पष्ट रूप से असंवैधानिक तरीके से। धोखे में ना रहें। संविधान में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी का उल्लेख ही नहीं है और वे हमारे नागरिकों के अधिकांश बहुमत का प्रतिनिधित्व भी नहीं करतीं।
नीति से सम्बन्धित निर्णय उन पार्टियों पर छोड़ देना जो संविधान द्वारा विनियमित ही नहीं हैं, एक अपराध भी है और असंवैधानिक भी, और इसे बंद किया जाना चाहिए।
राजनैतिक पार्टियाँ नागरिकों के लिए स्थानीय स्तर पर मिलने और विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए एक उपयुक्त स्थान हैं। संविधान डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियों को नीति बनाने या उनपर शासन करने का कोई अधिकार नहीं देता। शासन जिम्मेदार सरकारी संस्थाओं द्वारा बिना किसी निगमित राशि के पारदर्शी तरीके से होना चाहिए।
- मास्क और टीकाकरण व्यवस्था को बंद किया जाए
वो अति धनाढ्य लोग, जो भ्रष्ट सरकारी कार्यालयों के पीछे छुपे हुए हैं, बेकार NGO और विभिन्न पतनशील हस्तियाँ, हम लोगों को एक-दूसरे से दूर करने और एकत्रित होने की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार को नष्ट करने के लिए मास्क व्यवस्था और लॉकडाउन नीति की ओर धकेल रहे हैं।
विज्ञान स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि मास्क स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा रहे हैं और अत्याचार का एक जबरदस्त तरीका हैं। लॉकडाउन को लेकर भी यही बात लागू होती है।
अमीर लोग अपने स्टॉक होल्डिंग का उपयोग करके मीडिया दिग्गजों से माँग करते हैं कि स्थानीय अर्थव्यवस्था के लॉकडाउन और टीकाकरण के समाचारों का ढोल बजा दिया जाए।
उन्होंने विशेषज्ञों को रिश्वत देकर उस टीकाकरण को तुरन्त प्रभाव में लाने के लिए तर्क देने को कहा है जिसका परीक्षण जानवरों पर भी नहीं किया गया है, कानूनी दायित्वों से जो मुक्त है और जिसे गोपनीय तरीके से तैयार किया गया है। उन टीकों में संशोधित RNA है जिससे कैंसर, अल्जाइमर, पार्किन्सन जैसी गंभीर व अन्य पीड़ादायक बीमारियाँ होंगी। ये टीके बिल्कुल नहीं हैं, बल्कि स्वास्थ्य, सुरक्षा व बचाव के सेकरीन सिरप का चोगा पहने हुए लोगों के बीच युद्ध की एक घोषणा हैं।
इस गैरकानूनी टीका व्यवस्था के तहत हर किसी के अन्दर उन रसायनों को डाला जाएगा जो बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा गोपनीय तरीके से तैयार किए गए हैं और फिर उन वैश्विक व राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा स्वीकृत कराये गए हैं जो उनके नियंत्रण में हैं। वैज्ञानिकों और नागरिकों को संविधान के उल्लंघन में इस नीतिगत बहस से बाहर रखा गया है।
लगातार निगरानी, पैसे को बहुराष्ट्रीय बैंकों द्वारा नियंत्रित डिजिटल मुद्राओं से बदलने, और सभी लघु व्यवसायों को नष्ट करने के लिए इस संकट का फायदा उठाया जा रहा है। जो भोजन हमें खाना चाहिए वह भी बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा नियंत्रित होता है, जो दवा हमें इलाज के लिए लेनी चाहिए वह दवा कंपनियों द्वारा नियंत्रित होती है, विश्व को समझने के लिए जिस शिक्षा की हमें जरूरत है और जानकारी प्राप्त करने के लिए जिस पत्रकारिता की हमें जरूरत है वह निवेश बैंकों और बहु-अरबपतियों द्वारा नियंत्रित होती है।